श्रावण मास में शिव आराधना हमारे आध्यात्म की पूँजी को बढ़ाती है : डॉ. रीना - Discovery Times

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श्रावण मास में शिव आराधना हमारे आध्यात्म की पूँजी को बढ़ाती है : डॉ. रीना

 

कुरुक्षेत्र (अनिल धीमान): हमारे धर्म ग्रन्थों, वेदों, पुराणों एवं उपनिषदों में जिस अनंत शक्ति के द्वारा यह संसार संचालित होता है, वह है देवाधि देव महादेव। महादेव प्रत्येक स्वरूप में भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है। कभी महाँकाल बनकर काल से मुक्ति प्रदान करते है, कभी आशुतोष बनकर भक्तों के सारे मनोरथ त्वरित पूर्ण करते है, कभी चन्द्रशेखर और सोमनाथ स्वरूप से मन की पीड़ाओं से मुक्ति दिलाते है, कभी रामेश्वर स्वरूप में श्रीराम को भी अनंत आशीर्वाद और कृपा प्रदान करते है, तो कभी नीलकंठ बनकर सृष्टि के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते है ।
       आदि....अनंत....अविनाशी....शिव
        
            डमरू की ध्वनि से कैलाश को गुंजायमान करते है और सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते है । शिव तो विश्व व्यापी है एवं सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है । श्रद्धा एवं भावों की माला से आराधना करने पर शिव सरलता से प्राप्त हो जाते है। शिव जन्म-जन्मांतर के दु:खों को हर सकते है, इसलिए हम सदैव हर-हर महादेव के उच्चारण के साथ अपनी भक्ति को प्रबलता प्रदान करते है। उमापति अपने भक्तों की पुकार पर नीलकंठ बनकर उन्हें अमरत्व एवं जीवन प्रदान करते है। जिन सर्वव्यापी शिव के अंश से ही अनंत ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है वह शिव श्रावण मास में सृष्टि की सत्ता संचालित करते हुए अपने भक्तों को मनचाहा वर प्रदान करते है। भक्तों की प्रार्थना का शिव के पास केवल एक ही उत्तर है “तथास्तु” अर्थात वे अपने भक्तों को प्रसन्नतापूर्वक इच्छित वरदान प्रदान करते है ।

            महादेव तो परम जाग्रत स्वरूप है, जो हमें आनंद की अनुभूति कराते है । शिव का तो स्वरूप ही आनंदमय बताया गया है। भव से तारने वाले और भय को हरने वाले त्रिशूलधारी सिर्फ आनंद की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते है, ध्यान की उत्कृष्ट पराकाष्ठा को सिद्ध करते है। श्रावण मास भी शिव भक्तों के लिए एक उत्सव ही है। विभिन्न विधाओं जैसे काँवड़ यात्रा, रुद्राभिषेक, पार्थिव शिवलिंग निर्माण, व्रत, उपवास इत्यादि के द्वारा श्रद्धा की लौ से भक्त अपनी भक्ति के सूर्य को देदीप्यमान करते है । शिव भक्ति के द्वारा हमारा मन एक अलौकिक प्रकाश से आलौकित होता है। शिव शंभू में अपनी आस्था को प्रबल करने के लिए और मनोकामना पूर्ति के लिए श्रावण मास से श्रेयस्कर कुछ भी नहीं है क्योंकि यह भोलेनाथ का भी प्रिय माह है। हमें अपनी अंतरात्मा के तारों को उस परम सत्ता शिव से जोड़ना है, जो हमारी भक्ति और मुक्ति की प्यास को पूर्णता प्रदान करती है । हमारी आत्मा को परमात्मा में लीन करते है ।

            श्रावण मास में शिव आराधना हमारे आध्यात्म की पूँजी को बढ़ाती है । शिव तत्व तो भस्म से अपनी शोभा बढ़ाता है, क्योंकि जीवन का अंतिम सत्य भस्म ही है और शिव तो सत्यम-शिवम-सुंदरम स्वरूप को कृतार्थ करते है । ईश्वर की आराधना ही मनुष्ययोनि का परम सत्य और सार्थकता ही है । हमें अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखकर पर्व, व्रत और त्यौहार के पीछे का गूढ़ रहस्य समझना होगा। अपने सनातन मूल को सजीव रखना है। पश्चिमी अंधानुकरण के कारण हम धर्म और कर्म के मर्म को समझने में अक्षम हो रहे है। व्रत, पूजा एवं अर्चना भी एक दवाई है जो हमें नकारात्मकता से दूर कर परमात्मा की कृपा और चीजों के संभव होने में विश्वास दिलाता है ।

            आदि...अनंत...अविनाशी... शिव को जानना तो जीवन के सत्य से साक्षात्कार करना ही है । शिव परिवार हो या शिव आराधना सभी में गूढ़ शिक्षाएँ निहित है। नीलकंठ बनकर ध्यान लगाना सहज नहीं है । काल को सदैव समीप रखकर आनंद की खोज में लिप्त रहना केवल शिव शंभू ही कर सकते है । श्रावण मास शिव से जोड़कर हम भी अपने जीवन को सहजता, सरलता एवं संतुष्टि प्रदान कर सकते है ।   

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