कुरुक्षेत्र 20 नवंबर : राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय ने कहा कि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है जिसे भगवान विष्णु ने भगवान धन्वंतरी के माध्यम से मानव को प्रदान किया है। इसे युगों से पतंजलि, चरक, सुश्रुत, सुषेण और न जाने किन-किन महान ऋषि-मुनियों और चिकित्सा शास्त्रियों ने पुरस्कृत किया है और हम तक पहुंचाया है। आयुर्वेदिक पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया नाड़ी परीक्षण की होती है। यदि कोई भी आयुर्वेदाचार्य नाड़ी परीक्षण सही कर पाता है तो निश्चित रूप से रोग का निदान भी सुनिश्चित है क्योंकि आयुर्वेद अपने आप में एक पूर्व विज्ञान है। हमारे ऋषि-मुनियों और चिकित्सा शास्त्रियों ने इसे गहन आध्यात्मिक के बाद प्रमाणित किया है।
राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय रविवार को राष्ट्रीय आयुर्वेद परिषद, श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय एवं एनआईटी कुरुक्षेत्र द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला एवं संगोष्ठी के समापन अवसर पर भावी चिकित्सकों और डॉक्टरों को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय ने भगवान धन्वंतरि के चित्र पर पुष्प अर्पित किये और दीप प्रज्वलित किया गया। आयुष विश्वविद्यालय के कुलति डॉ. बलदेव कुमार ने राज्यपाल का पुष्प गुच्छ व भागवत गीता देकर स्वागत व अभिनंदन किया। राज्यपाल ने कहा कि रोग के निदान के लिए आचार्य योग रत्नाकर ने रोगी के परीक्षण की आठ किस्मों का वर्णन किया है, जिनके नाम हैं नाड़ी, मल, मुत्र, जिव्हा, शब्द, स्पर्श, ड्रिक और आकृति। उनमें से, रोगों की स्थिति का निदान करने के लिए नाड़ी परीक्षण सबसे आवश्यक है। नाड़ी परीक्षण रोग की संपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डालती है। प्राचीन आयुर्वेद के विद्वानों ने वात, पित्त, कफ को त्रिदोष कहा है। एक वक्त था जब वैद्य चेहरा देखकर व नाड़ी को छूकर वात, पित व कफ जनित रोग को जान लेते थे। आपको याद ही होगा कि लक्ष्मण को जीवन देने के लिए वैद्य सुषेण ने संजीवनी बूटी मंगवाई थी। आयुर्वेद में काल के ग्रास से रोगी को खींच लाने की वह शक्ति आज भी विद्यमान है।
राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय ने आयुष विश्वविद्यालय की दो दिवसीय कार्यशाला व संगोष्ठी के समापन कार्यक्रम में की शिरकत, आयुर्वेद में रोगी को काल के ग्रास से भी वापिस खींच लाने की है शक्ति, दिन में एक बार भोजन करने वाला मनुष्य होता है महायोगी
उन्होंने कहा कि समय बदलने पर आधुनिक जीवन-शैली ने हमें जहां अनेक सुख-सुविधाएं दीं तो हमसे बहुत कुछ छीन भी लिया। सुविधाभोगी बनने के साथ ही हमें रोग, विकार और परेशानियां मिल रही हैं। नई-नई बीमारियां से करोड़ों लोग पीडि़त हैं। घर-घर में डायबिटीज, रक्तचाप, मोटापा, तनाव, सर्वाइकिल आदि रोग पनप गए हैं। शारीरिक श्रम कम और कम होता जा रहा है। भौतिक सुविधाएं कार, लिफ्ट आदि बनकर हमें चार कदम चलने भी नहीं देतीं। विज्ञान की इस तरक्की में अनन्त उपकरण, मशीनें, दवाईयां, चिकित्सा सुविधाएं आदि उपलब्ध हो गए हैं। लेकिन इन्होंने हमारा चौन छीन लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव स्वास्थ्य की परिभाषा है। भारत ने पिछले कुछ सालों में तेजी के साथ आर्थिक विकास किया है लेकिन इस विकास के बावजूद बड़ी संख्या में लोग कुपोषण के शिकार हैं जो भारत के स्वास्थ्य परिदृश्य के प्रति चिंता उत्पन्न करता है।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद की सबसे मुख्य विधा नाड़ी विज्ञान है। जिसे जांच कर हमारे ऋषि-मूनी रोगी के रोग का कारण बता देते थे। दरअसल आयुर्वद सम्पूर्ण विज्ञान है। जिसे भारत देश के ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों ने समय-समय पर साबित भी किया है। आयुर्वेद में रोग के परीक्षण के लिए अष्टविध परीक्षा का वर्णन किया गया है। इनमें से नाड़ी एक है जिसके माध्यम से रोगी के रोगों एवं प्रकृति का पता लगाया जा सकता है। आधुनिक विज्ञान ने मनुष्य को बहुत सारी सुविधाओं से सुसज्जित किया है। मगर उसके साथ बीमारियां भी बढ़ी हैं। हजारों लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। मोटापे से बचने के लिए एक मूल मंत्र है। जो दिन में तीन बार खाता है वह महाभोगी है, दो बार खाने वाला भोगी और दिन में एक बार खाने वाला महायोगी कहलाता है। आयुष विवि के कुलसचिव नरेश कुमार ने आए हुए सभी गणमान्यों, आयोजक टीम व सहभागियों का धन्यवाद प्रकट किया। इस मौके पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. सोमनाथ सचदेवा, एनआईटी कुरुक्षेत्र के निदेशक प्रो. बी.वी. रमना रेड्डी व विश्व आयुर्वेद परिषद के संगठन सचिव, वैद्य योगेश मिश्रा, राष्ट्रीय महासचिव, प्रो. अश्वनी भार्गव, हरियाणा प्रांत के अध्यक्ष, मुकेश अग्रवाल, सह संगठन सचिव, वैद्य के.के. द्विवेदी,आयोजन समिति के सदस्य डॉ. ऋषि राज वशिष्ठ, डॉ पुष्कर वशिष्ठ और संजय जाखड़ भी मौजूद रहे।